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"प्राचीन चाय घोड़ा मार्ग"पर चीन-भारत व्यापार का नया केन्द्र
2015-08-31 14:27:38 cri

नाथुरा दर्रे में भारतीय व्यापारी

वर्तमान में नाथुला दर्रे में सीमावर्ती व्यापार का लगातार विकास हो रहा है। लेकिन आयात-निर्यात के बुनियादी संस्थापन की स्थिति द्विपक्षीय व्यापार की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं रही। अब व्यापारी तीन टीमों में बांट कर तीन दिनों में चरणबद्ध तौर पर चौकी से आते और जाते हैं जिसके माध्यम से वो व्यापार करते हैं। अगर एक ही दिन में आने-जाने वाले वाहनों की संख्या सौ से दो सौ तक हुई, तो चौकी पर सीमा पारगमन के लिए भारी बोझ होगा। ऐसी स्थिति के मद्देनज़र हाल के वर्षों में चीन सरकार सीमावर्ती व्यापारिक बाज़ार को व्यापक करने में सक्रिय है। इसकी चर्चा करते हुए यातोंग कांउटी के वाणिज्यिक मामला ब्यूरो के प्रधान पा वांग ने कहा:

"वास्तविकता में अभी यह एक अस्थाई सीमावर्ती व्यापारिक बाज़ार है। बाद में हम इस बाज़ार को रनछिंगकांग तक स्थानांतरित करेंगे। वहां का दायरा विशाल है और बाज़ार के पैमाने का और विस्तार किया जा सकेगा। वर्तमान में भारत से आए वाहनों की संख्या अधिक है। पार्किंग एक बड़ी परेशानी बन गया है।"

मित्रों, नाथुला दर्रे पर सीमावर्ती व्यापारिक बाज़ार के फिर से शुरू होने के पहले दक्षिण-पश्चिमी चीन के सछ्वान प्रांत की राजधानी छंगतु, युन्नान प्रांत की राजधानी खुनमिंग और शिनच्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश के व्यापारी करीब 10 दिनों का प्रयोग कर अपने उत्पादों को दक्षिण-पूर्वी एशिया से होकर जलीय रास्ते के माध्यम से भारत तक पहुंचाते थे। यह रास्ता कुल 6 हज़ार किलोमीटर लम्बा है। उस समय चीन और भारत के बीच 90 प्रतिशत से अधिक व्यापार इस रास्ते से किया जाता था। लेकिन आज नाथुला दर्रे से गुज़रकर व्यापार करने वाले रास्ते की दूरी कम हुई है। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा से यातोंग होकर कोलकाता बंदरगाह तक रास्ता करीब 1200 किलोमीटर कम हुआ है। यह विदेशों में पश्चिमी चीन के खुलेपन के लिए फायदेमंद है। नाथुला दर्रा खोलने से उत्पादों को एक ही दिन में दूसरे देश तक पहुंचाया जा सकता है। परिणाम स्वरूप व्यापारिक खर्च कम हो जाता है। इस तरह चीन और भारत के बीच सहयोग का आधार और विस्तार होगा। नाथुला दर्रे पर सीमा की रक्षा करने वाले चीनी जन मुक्ति सेना के सैनिक ल्याओ श्याओपिंग ने यातोंग कांउटी के इस बंदरगाह के प्रति आशावान हैं। उसने कहा:

"भविष्य में मैं अपना मिशन अच्छी तरह निभाऊंगा। मुझे उम्मीद है कि यातोंग बंदरगाह का और अधिक विकास होगा। वर्तमान में यहां सिर्फ़ सीमावर्ती व्यापारिक रास्ता खोला गया है। बाद में चीन और भारत के बीच सबसे बड़ा औपचारिक थलीय बंदरगाह खुलेगा। यहां मैं पिछले कई वर्षों से कार्यरत हूं। भविष्य में कई वर्षों में शायद मैं फिर यहां वापस लौटूं। जहां अब मैं काम कर रहा हूँ। उस समय मुझे जरूर गर्व होगा।"

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