चीन में उत्सवकर चित्र का इतिहास बहुत पुराना है। हान राजवंश काल में बीमार या भूत उतारने के लिए फाटक पर उस्तवकर चित्र लगाना शुरू हुआ।
सुंग राजवंश काल में उत्सवकर चित्र के उत्पादन में काष्ठ का उपयोग शुरू हुआ। बाजार में भी चित्र मिल सकता था। इस तरह उत्सवकर चित्र का बड़ा विकास हुआ।
इस समय उत्सवकर चित्र में संपन्न व आनंद की भावना, ञपेरा की दास्तान, रीति-रिवाज और मंगलसूचक शामिल हो गये। चित्र में मंगलसूचक मिलता है, जैसा कि मुटरी और चमगादड़ सब लोकप्रिय है, इस लिए चितंर में मिलता है। मुद्रिद चित्र के उत्पादन में काष्ठ का इस्तेमाल किया जाता है, और चित्र खींचने की तकनीक निश्चित है, तो शैलियां अलग अलग है।
मिंग और छिंग राजवंश काल में उत्सवकर चित्र के उत्पादन में बड़ी प्रतगि की गई। चित्र तीन शैलियों में विभाजित हुए, उत्तरी चीन में थ्येनचिन का यांगल्यूछिंग, पूर्वी चीन में सूचओ का थाओह्वाउ और शानतुंग प्रांत के वेई जिले का यांगच्यापू विख्यात हैं।