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घड़ीयाल

 

घडीयाल चीन के परम्परागत ताल वाद्य यंत्रों में से माना जाता है , उस का चीनी जातीय संगीत बैंडों में महत्वपूर्ण स्थान ही नहीं , उस के प्रयोग का दायरा भी अपार विशाल है । जातीय संगीत बैंडों , लोकसंगीत , विभिन्न प्रकार के औपेराओं और नृत्यगान आदि मनोरंजक कार्यक्रमों में उस का ज्यादा प्रयोग किया जाता है , साथ ही पर्वों की खुशियों , ड्रेगन रूपी नावों की प्रतियोगिता , शेर नृत्य , शानदार फसलों की खुशियों और श्रम होड़ और अन्य उल्लासपूर्ण गतिविधियों में लो की कमी नहीं हो सकती ।

चीनी ताल वाद्य यंत्र बनाने की सामग्री धातु , बांस व लकड़ी और अन्य वस्तुओं की किस्में होती हैं । घड़ीयाल का ढांचा बहुत सरल है , वह तांबे से बनाया जाता है और उस का आकार प्रकार पतला गोलाकार होता है । वादक द्वारा विशेष लकड़ी हथोड़े से उस के केंद्रीय भाग को पीटे जाने से ध्वनि निकल सकती है ।

  दक्षिण पश्चिम चीन में बसी अल्पसंख्यक जातियों ने सब से पहले घड़ीयाल का प्रयोग किया । ईसापूर्व दूसरी शताब्दी में विभिन्न जातियों के बीच सांस्कृतिक आवाजाही बढ़ने के चलते घड़ीयाल का प्रचार प्रसार धीरे धीरे चीन के भीतरी इलाकों में हो गया । उस समय लो का प्रयोग अधिकतर युद्ध मैदानों में किया जाता था , लड़ाई लड़ते समय कमाडर लो के सहारे सैनिकों को निर्देश देते थे । चीन के प्राचीन सैन्य शब्द में सोने की आवाज से सेना की वापसी में घड़ीयाल को सोने का संज्ञा दिया गया ।

लम्बे अर्से से क्षेत्रों व अखाड़ों की भिन्नता से तीस से अधिक किस्मों वाले घड़ीयाल प्रकाश में आये हैं , पर आम तौर पर छोटे व बड़े दोनों प्रकार के लो का ज्यादा प्रयोग किया जाता है ।

बड़े आकार वाला घड़ीयाल तांबे लो में सब से बड़ा माना जाता है , उस के व्यास तीस से सौ सेंटमीटर के होते हैं । इसी प्रकार के घड़ीयाल की ध्वनि मोटी भारी होने पर भी कोमल लगती है । बड़ी संगीत मंडली में बड़ा घड़ीयाल वातावरण को हर्षोल्लापूर्ण बनाने और ताल बढ़ाने में भूमिका निभाता है , जबकि औपेराओं में पर्यावरण बढ़ाने और पार्टों के स्वभाव को सजीव रूप से अभिव्यक्त करने के लिये उस का ज्यादा प्रयोग किया जाता है ।

छोटे आकार वाले घड़ीयाल ऊंची , मध्यम व हल्की तीनों प्रकार की ध्वनियां निकलने वाले होते हैं । उन का व्यास 21 से 22.5 सेंटिमीटर है । इसी प्रकार के घड़ीयाल का प्रयोग चीनी पेइचिंग औपेरा , फिंग औपेरा और अन्य बहुत से स्थानीय औपेराओं में किया जाता है , साथ ही नाटक , सुषिर वाद्य संगीत व लोक नाट्य नृत्य में भी उस की भूमिका है ।

[धुन सुनिये]: 《मछली पकड़ने में फैला जाल》

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