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खुंगहाओ

खुंगहाओ चीन के प्राचीन तंतुवाद्यों में से है , उस का इतिहास बहुत पुराना है । सर्वेक्षण से पता चला है कि पिछले दो हजार वर्षों से पहले ही उस का प्रचार प्रसार शुरू हुआ था । प्राचीन काल में शाही बैंड में उस के प्रयोग के अतिरिक्त आम जनता के बीच वह भी काफी लोकप्रिय रहा था । चीन के थांग राजवंश ( 618 – 907 ) काल में तेज आर्थिक व सांस्कृतिक विकास के चलते खुंगहाओ बजाने की कला भी अपनी बुलंदी पर थी । इसी काल से ही खुंगहाओ का प्रचार प्रसार क्रमशः जापान और कोरिया आदि पड़ोसी देशों में हुआ था । जापान के तुंग ल्यांग मठ में आज भी थांग राजवंश काल के दो बचे खुचे खुंगहाओ साज सुरक्षित हैं । लेकिन इस प्राचीन वाद्य का प्रचार प्रसार 14 वीं शताब्दी से लुप्त होने लगा , लोगों को सिर्फ प्राचीन भित्ति चित्रों और मूर्तियों में खुंगहाओ का रूप देखने को मिल सकता है ।

पिछले अनेक वर्षों से लुप्त इस वाद्य को मंच पर फिर से पेश करने देने के लिये गत सदी के 50 वाले दशक से चीनी संगीतकारों और वाद्य निर्माताओं ने बड़ी तादाद में संबंधित सामग्री पर अनुसंधान किया और प्राचीन ग्रंथों और सुरक्षित प्राचीन भित्ति चित्रों के आधार पर कई प्रकार वाले खुंगहाओ की डिजाइन कर तैयार कर दी । लेकिन इन तैयारशुदा खुंगहोओ में बहुत सी कमियों की वजह से उस का प्रचार प्रसार नहीं हो पाया । गत सदी के 80 वाले दशक के शुरू में एक नये प्रकार वाला खुंगहाओ – जंगली हंस पांत रूपी खुंगहाओ निर्मित किया गया । इसी प्रकार के खुंगहाओ की संरचना संपूर्ण वैज्ञानिक ढंग की है और उस की आवाज जातीय विशेषता युक्त भी है , इसलिये वह संगीत के जगत में जल्द ही लोकप्रिय होने लगा ।

प्राचीन काल में प्रचलित खुंगहाओ आम तौर पर लेटने वाला और खड़ा होने वाला पाया जाता है । इस नये आकार वाला खुंगहाओ प्राचीन खड़ा होने वाले खुंगहाओ के मूल आकार के आधार पर तैयार किया गया है । इस नये प्रकार वाले खुंगहोओ का आकार प्रकार पश्चिमी वाद्य शुछिन वाद्य से मिलता जुलता है , पर नये आकार वाले खुंगहाओ पर तारों की दो लाइने लगी हुई हैं और हरेक लाइन में 36 तारें हैं , सभी तारें इतने सुव्यवस्थित रूप से लगी हुई हैं कि देखने में आकाश पर उड़ते जंगली हंस की पांत जान पड़ती हैं , इसीलिये इसी प्रकार के खुंगहाओ को जंगली हंस पांत खुंगहाओ कहलाया जाने लगा ।

इस नये आकार वाले खुंगहाओ की आवाज सुंदर व पारदर्शी है और आवाज का दायरा भी विस्तृत है , उस से प्राचीन व आधुनिक जातीय संगीत बजाया जाता है , साथ ही शुछिन वाद्य की धुन भी बजायी जा सकती है । क्योंकि उस पर लगी तारों की दो लाइनों से निकलने वाला स्वर समान है , इसलिये वह धुन बजाने में दो शुछिन की भूमिका निभा सकता है , इतना ही नहीं , वादक सब से मधुर मध्यम आवाज क्षेत्र में बायं व दायं हाथों से साथ साथ मनमोहक धुन बजा सकते हैं , यह विशेषता अन्य तंतु वाद्य यंत्रों में देखने को नहीं मिलती है ।

[खुंगहाओ से बजायी गयी धुन]《शियांगफी बांस》

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