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मिंग राजवंश के 13 शाही मकबरों का समूह मिंग राजवंश के तीसरे सम्राट चु ती द्वारा राजधानी को पेइचिंग में स्थानांतरित किया जाने के बाद निर्मित हुआ था । इस के बारे में एक ऐतिहासिक कहानी अब तक मशहूर है। मिंग राजवंश का प्रथम सम्राट चु युनजांग था , उस ने मिंग राजवंश की राजधानी को नानचिंग में स्थापित किया , उस की मृत्यु के बाद सम्राट की गद्दी उस के पौता को सौंपी गई , लेकिन उस के चोथे पुत्र यु ती ने अपने भतीजे ,युवा सम्राट के विरूद्ध राजविपल्व छेड़ा और लगातार तीन सालों से युद्ध करने के बाद राज्य की सत्ता अपने हाथ में ले ली । सत्ता पर कब्जा करने के बाद नए सम्राट चु ती को यह बराबर महसूस हो रहा था कि नानचिंग शहर उस के लिए सुरक्षित नहीं था , तो उस ने राजधानी को नानचिंग से पेइचिंग में स्थानांतरित कर दिया । अपने शासन काल में चु ती ने अपने लिए मकबरा बनाने का स्थल चुनने हेतु आदमी नियुक्त किए , अंत में पेइचिंग के उत्तर पश्चिम भाग में एक सुन्दर और मंगलमय पहाड़ी क्षेत्र चुना गया और वहां शाही मकबरा बनाना शुरू किया गया । इस सथान का नाम छांगलिंग रखा गया । वर्ष 1409 से ले कर वर्ष 1644 में मिंग राजवंश के पतन तक कुल दो सौ से ज्यादा सालों के दौरान वहां 13 सम्राटों के लिए शाही मकबरे बनाये गए , जो मिंग राजवंश के शाही मकबरों का एक समूह बन गया , इसलिए इस स्थान का नाम भी 13 शाही मकबरा समूह पड़ा ।
मिंग राजवंश के 13 शाही मकबरों का आम ढांचा मिंग शाओलिंग सरीखा बनाया गया । मकबरा क्षेत्र में मध्य धुरी की लाइन पर शाही मान मर्यादा दिखाने के लिए लम्बा प्रवेश मार्ग बनाया गया । मकबरा क्षेत्र के मुख्य द्वार के सामने एक विशाल प्रस्तर तौरण खड़ा किया गया , जो 450 साल बाद आज भी अच्छी तरह सुरक्षित रहा है । वह समूचा रूप में सफेद रंग के संगमरमर पत्थर से निर्मित हुआ है , जिस पर तराश का काम अत्यन्त सुन्दर और उत्तम है , जो मिंग और छिंग राजवंशों में बहुत विरल मिलता है । प्रस्तर तौरण से कुछ दूर मकबरे का मुख्य द्वार --शाही द्वार है । वह मकबरा क्षेत्र का मूल द्वार है , तत्काल में अपने पूर्वजों की पूजा करने आने के समय सम्राट को इस द्वार से गुजरना पड़ता था । शाही द्वार से आगे पहाड़ी ढलान के अनुसार करीब 40 किलोमीटर लम्बी दीवार खड़ी की गई , जिस के कुल दस दरवाजे है , तत्काल में हरेक दरवाजे पर बड़ी संख्या में सिपाही पहरी देते थे । 13 मकबरों के समूह में हरेक मकबरे के लिए प्रबंधन , माली तथा सेना विभाग नियुक्त हुए थे । प्रबंधन विभाग के अधिकारी मकबरे का देखरेख करते थे और पूजा का काम संभालते थे , ऐसे विभाग मकबरों के बिलकुल पास स्थापित हुए थे । माली विभाग के लोग मकबरे के लिए पूजा कर्म में प्रयुक्त होने वाले सब्जियों और फलों की खेती करते थे और सेना मकबरे की रक्षा करती थी ।
सम्राटों ने अपने कमबरों की चिरस्थाई मजबूती और रक्षा के लिए मकबरों को बड़ा रहस्यमय रंग दिया और कब्रों को भी अत्यन्त गुप्त व मजबूत रूप से बन्द कर दिया गया । इस के कारण विभिन्न मकबरे के भूमिगत भवन का स्टीक सथान बराबर गोपनीय रहा । 13 शाही मकबरों में से तिनलिंग का भूमिगत भवन भी रहस्यमय रहा था , वर्ष 1956 के मई माह तक चीनी पुरातत्व कर्ताओं ने इस के भूमिगत भवन की खुदाई करने का निश्चय किया । तिनलिंग मकबरे का भूमिगत भवन 1195 वर्गमीटर का है , जो अग्रिम , मध्य , पिछवाड़ा , दाईं और बाईं पांच भागों में बंटा है । पूरा भूमिगत भवन पत्थर से बना है । ताबूत भूमिगत भवन के भीतर रखा जाने के समय भवन के फर्श को क्षति नहीं पहुंचने देने के लिए जो मोटी लकड़ी बिछायी गई थी , उस के अग्रमि और पिछवाड़े हाल में छोड़े रखे हुई है । मध्य हाल में तीन सफेद रंग के संगमरमर के चबूतरे है , बीच में सब से बड़े चबूतरे पर जो ताबूत रखा गया है , वह सम्राट चु यिछुन का है , उस के बाईं दाईं पक्षों में दो चबूतरों पर रखे गए ताबूत उस की दो साम्राज्ञियों के हैं । चबूतरों की चारों ओर 26 संदूक रखे गए हैं , जिन में सम्राट के साथ दफनायी गई जेड की चीजें और चीनी मिट्टी के बर्तन रखी हुई हैं । तिनलिंग मकबरे की खुदाई से बड़ी मात्रा में अनमोल सांस्कृतिक अवशेष प्राप्त हुए है , जो 3000 से अधिक हैं , जिन में सुन्दर रेशमी वस्त्र , अनुपम सोने के आभूषण तथा दुलर्भ सोने , चांदी , जेड और चीनी मिट्टी के पात्र बर्तन शामिल हैं । ये अवशेष मिंग राजवंश काल की शिल्प कला के अध्ययन के लिए मूल्यवान सामग्री हैं ।
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