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सानशिन टीले की खुदाई

प्राचीन काल में चीन की विशाल भूमि पर कभी बड़ी संख्या में छोटा छोटा काबलाई राज्य भी शासन करते थे । आज के सछवान प्रांत के क्षेत्र में प्राचीन समय कभी शु राज्य शासन करता था , 20वीं शताब्दी के 70 वाले दशक में वहां पुरातत्व खुदाई में उपलब्ध सानशिन टीले की सभ्यता विश्व में काफी नामी हुई ।

  सानशिन टीला चीन के सछवान प्रांत के क्वांगहान शहर के भीतर स्थित है , वह आज से पांच से ले कर तीन हजार साल पहले के प्राचीन शु राज्य का खंडहर है । वर्ष 1929 के वसंत में वहां के एक किसान ने खेती के समय जमीन में से एक सुन्दर जेड पात्र पाया , जिस में प्राचीन शु राज्य की विशेष कला शैली काफी ध्यानाकर्षक है । इस के बाद तीन हजार साल पहले की सानशिन टीले की सभ्यता की खोज का काम आरंभ हुआ । वर्ष 1986 में चीनी पुरातत्व कर्ताओं ने वहां दो बड़े आकार वाले पूजा स्थलों की खुदाई में 1000 से ज्यादा सुन्दर और अनोखे सांस्कृतिक अवशेष प्राप्त किए , जिस की ओर विश्व का ध्यान बरबस खिंच गया । इन सांस्कृतिक अवशेषों के अध्ययन से सानशिन टीले के ऐतिहासिक रहस्य का भी उद्घाटन हुआ ।

सानशिन सभ्यता की खोज में यह उल्लेखनीय है कि टीले की खुदाई में बड़ी मात्रा में कांस्य मुखोटे प्राप्त हुए हैं । इस से पहले मध्य चीन के हनान प्रांत के पुरातत्व खुदाई में भी बड़ी मात्रा में सुन्दर कांस्य बर्तन मिले हैं , पर उस में कांस्य मुखोटा नहीं है । सानशिन टीले की खुदाई में पाये मुखोटों की आकृति बहुत अनोखी है , वे बहुधा मोटी भौंह , बड़ी आंखों , ऊंचे नाक , चौड़ा मुंह और बिना जबड़ा वाली है , जो मुस्कराती सी भी लगती है और गुस्सा में आयी सी भी लगती है । इस प्रकार के कांस्य मुखोटे के दोनों कानों पर एक एक छेद भी है। सानशिन में मिले मुखोटे की आकृति आधुनिक स्थानीय मानव से काफी भिन्न है , इस प्रकार के मुखोटे का क्या अर्थ होता है , यह अब भी एक रहस्य है ।

सानशिन टोले की खुदाई में एक लम्बी और पतली कांस्य मानव प्रतीमा भी मिली है , जिस का मुखड़ा मुखोटा जैसा है , उस के शरीर पर अबाबील की पूच्छ रूपी पोशाक पहना है , नंगे पांवों से एक ऊंचे स्तंभ पर खड़ी है , कांस्य प्रतीमा 170 सेंटीमीटर ऊंची है , जो वर्तमान विश्व में मिली सब से लम्बी कांस्य मुर्ति है । मानव प्रतीमा के दो हाथों में से एक ऊपर और दूसरा नीचे बढ़े किसी चीज को पकडने की मुद्रा में हैं । लेकिन खुदाई के समय उस के हाथों में कोई भी चीज देखने को नहीं मिली , विशेषज्ञों का अनुमान है कि ऊंची पतली मुर्ति जब खड़ी हुई बनायी गई , यदि उस के हाथों पर भार पड़ा , तो वह एक तरफ गिर पड़ सकती है , इसलिए उस में महज चीज पकडने की मुद्रा बनायी गई , असल में कोई भी चीज नहीं रखी गई थी । इस कांस्य प्रतीमा के भंगामे और हस्तमुद्रा से लगता है कि वह तांत्रिका या देवता हो और पूजा का कर्म करता हो ।

सानशिन टीले में सोने की छड़ी , कांस्य देव वृक्ष और हाथी के दांत भी मिले हैं , सोने की छड़ी 1.42 मीटर लम्बी है , जिस पर अनुपम और रहस्यमय रेखाएं खिंची हुई है , एक दूसरे से मुख करती हुई दो पक्षियां , पीठ से पीठ जुड़ी दो मछलियां भी चित्रित हैं , मछली के सिर तथा पक्षी के गर्दन पर तीर जैसी चीज दबी हुई है और रहस्यमय मुस्कान में एक मानव सिर की तस्वीर भी है । कांस्य देव वृक्ष चार मीटर ऊंचा है , जिस के तीन तल्ले हैं और नौ शाखाएं हैं , हरेक शाखा पर एक पक्षी खड़ी है । अनुसंधान से यह माना जाता है कि वह कोई साधारण पक्षी नहीं है , बल्कि सुर्य देव पक्षी है ।

विशेषज्ञों के अनुसार सानशिन टीले की खुदाई में बड़ी मात्रा में प्राप्त कांस्य बर्तनों में प्राचीन शु राज्य की सांस्कृतिक विशेषता स्पष्ट होती है और पश्चिम एशिया तथा अन्य क्षेत्रों की सांस्कृतिक विशेषता भी झलकती है । खास कर कांस्य मुर्तियां और सोने की छड़ी विश्व में मशहूर प्राचीन माया व मिस्र सभ्यताओं से मिलती जुड़ती है । इस किस्म की संकरी संस्कृति और मध्य चीन की कांस्य बर्तन वाली सभ्यता में काफी फर्क होता है । इन के अलावा पूजा स्थल की खुदाई से हाथी के 70 दांत प्राप्त हुए हैं , जिस से जाहिर है कि सानशिन टीले के क्षेत्र में स्थित शु राज्य और दूर निकट के देशों के बीच मालों का व्यापार था । कुछ मिट्टी के बर्तनों का रूपाकार यूरोप के समान कालीन मदिरा कप जैसा है , इस से जाहिर है कि सानशिन के कांस्य बर्तनों पर पश्चिम एशिया , निकट पूर्व तथा यूरोप की संस्कृति का प्रभाव पड़ा है । सानशिन टीले के सांस्कृतिक अवशेषों से चीन के पुरातत्व शास्त्र , सौंदर्य शास्त्र तथा इतिहास शास्त्र की रिक्ती की भरपाई हुई है ।

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