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सारांश

चीन में बड़े पैमाने पर औद्यौगिकीकरण का इतिहास मात्र आधी शताब्दी लम्बा है , किन्तु जन संख्या अधिक तथा विकास की गति तेज होने और नीतिगत समस्याएं मौजूद होने के कारण पर्यावरण व प्राकृतिक संसाधन की विषमताएं चुनौती देने वाली है तथा अत्यन्त गंभीर है । देश में मिट्टी का कटाव और पानी का बहाव गंभीर स्थिति में पड़ा है , रेतीली भूमि का निरंतर विस्तार हो रहा है , जंगलों के क्षेत्रफल में भारी कटौती हुई है , प्राकृतिक वनस्पतियां नष्ट की गई , जैव विविधता को क्षति पहुंची है , जीवजंतुओं की किस्मों का विनाश तेज गति में हो रहा है और जल व वायु का प्रदूषण अत्यन्त गंभीर है ।

पिछली शताब्दी के 70 वाले दशक के आरंभ में संयुक्त राष्ट्र मानवी पर्यावरण सम्मेलन की प्रेरणा से चीन का पर्यावरण संरक्षण का काम शुरू हुआ , इस के उपरांत के बीस से अधिक सालों के प्रयासों के परिणामस्वरूप चीन में प्रदूषण रोकथाम व संसाधन संरक्षण की अपेक्षाकृत पूर्ण विधि व्यवस्था तथा नीति पद्धति कायम हो चुकी है और पर्यावरण संरक्षण में पूंजी का निवेश भी बढ़ाया जा रहा । लेकिन विकसित देशों की तूलना में चीन की पर्यावरण संरक्षण नीतिगत व्यवस्था अपूर्ण है , बहुत सी संबंधित नीतियां विभिन्न स्तरों की सरकारी परम्परागत योजनाओं तथा प्रशासनिक आदेशों पर आधारित है । बहुत से क्षेत्रों में सरकारी पर्यावरण संरक्षण विभागों की कानून कार्यान्वय की कार्यक्षमता कमजोर सिद्ध हुई है , जिस के कारण विभिनिन नीतियों पर अमल नहीं किया जा सकता और पर्यावरण संरक्षण की गुणवत्ता के सुधार पर अंकुश लगी है । वर्तमान में चीन सरकार ने पर्यावरण संरक्षण पर और बड़ा बल देने की रणनीति बनायी , ताकि चीन में आर्थिक व सामाजिक तेज व स्वस्थ विकास को बनाए रखने के साथ साथ मानव और प्रकृति के बीच मेलमिलाप और संतुलन कायम हो ।

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