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टुटा दर्पण पुनः जुड़ने की कहानी

टुटा दर्पण पुनः जुड़ने की कहानी प्राचीन काल से अब तक चीन में लोकप्रिय प्रचलित है । कहानी में सच्चे प्रेम से बंधे दंपति के जुदा होने के बाद फिर से मिलने का उल्लेख होता है ।

कहानी छठी शताब्दी में हुई थी,उस जमाने में चीन के उत्तरी भाग में शक्तिशाली स्वी राज्य राज करता था ,जबकि दक्षिण चीन में कुछ छोटा छोटा राज्य अलग अलग शासन करते थे । इन छोटे राज्यों में से छन राज्य की राजधानी च्यानखांग यानी आज के नानचिंग शहर में थी । उत्तर चीन का सशक्त स्वी राज्य हर वक्त दक्षिण के इन छोटे राज्यों को हड़प कर देश का एकीकरण करने की ताक में था ।

श्युत्हेयान छन राज्य के सम्राट छनसुपो का एक वरिष्ठ सेवक था , उस की पत्नी सम्राट छन सुपो की छोटी बहन राजकुमारी लेछांग थी , दोनों पति पत्नी में गाढ़ा प्रेम था । छन राज्य का शासन बहुत भ्रष्ट और पतित था , श्युत्हेयान को मालूम था कि इस राज्य का एक न एक दिन जरूर विनाश होगा , इसलिए वह हमेशा चिंता से जड़ित रहा ।

एक दिन श्यु त्हेयान ने बड़ी चिंतित लहजे में अपनी पत्नी से कहाः हमारे राज्य में जल्द ही भारी गड़बड़ी होगी , उस समय मैं सम्राट की रक्षा करने के काम से अलग नहीं हो सकूंगा , हमारी दोनों पति पत्नी विवश हो कर जुदा हो जाएंगे । लेकिन जब हम जिन्दा रहेंगे , तो पुनः मिलने का मौका अवश्य आएगा । हमें एक ऐसी चीज अपने पास सुरक्षित रखना चाहिए , जो पुनः मिलने के समय वह साक्षी होगा ।

राजकुमारी लेछांग अपने पति की राय पर सहमत हो गई । तो श्युत्हेयान ने तांबे से बना एक गोलाकार दर्पण निकाला और उस के दो टुकड़े कर दिये , उस ने एक टुकड़ा अपने पास रखा और दूसरा टुकड़ा अपनी पत्नी को सौपा और कहा कि यदि हम दोनों जुदा हो गए ,तो हर साल के पहले माह की 15 वीं तारीख को अपना अपना आधा टुकड़ा वाला दर्पण बाजार में बेचने के नाम पर लगाया जाए , जब तक मैं जिन्दी रहूंगा , तब तक मैं जरूर वहां देखने जाऊंगा , यह टुटा दर्पण हमारे पुनःमिलन का साक्षी होगा ।

इस के बाद ज्यादा समय नहीं बीता , उत्तर चीन को एकीकृत कर स्वी राज्य के सम्राट स्वी वनती यांगच्यान ने सेना भेज कर छन राज्य की राजधानी च्यानखांग पर हमला बोला , कमजोर छन राज्य जल्द ही नष्ट कर दिया गया और उस का सम्राट भी मारा गया । इस हालत में श्यु त्हेयान फरार हो गया । छन राज्य पर विजय पाने में योगदान करने वाले लोगों को इनाम देने के लिए स्वी वनती ने युद्ध के दौरान पकड़ी गई छन राज्य की रजकमारी लेछांग को अपने मंत्री यांगसु के हवाले कर दिया।

फरार हुए श्युत्हेयान को बाद में पता चला कि उस की पत्नी लेछांग स्वी राजवंश की राजधानी ताश्यन यानी आज के सीआन शहर में थी ,तो वह दूर दूर से ताश्यन आ पहुंचा । हर देर रात वह दर्पण का वह आधा भाग निकाल कर अपनी पत्नी के साथ बीते सुनहरे दिन की याद करता रहा । उस की पत्नी पूर्व छन राज्य की कुमारी लेछांग स्वी राजवंश के मंत्री यांगसु के भवन में छोटी पत्नी के रूप में अत्यन्त सुखविलास का जीवन तो बिताती थी , किन्तु उस के हृद्य में पति की याद हमेशा आया करती थी , वह भी अकसर दर्पण का अपना पास वाला आधा भाग निकाल कर बीते दिन की याद करती थी ।

साल के पहले माह की 15 वीं तारीख का दिन आखिरकार आ गया । श्युत्हेयान ताश्यन शहर के रोनक बाजार में जा पहुंचा , उस ने देखा कि वहां एक वृद्ध लोग ऊंचे दाम पर आधा टुकड़ा वाला एक दर्पण बेचने में बैठा था , यो ऊंचे दाम से कोई भी आधा दर्पण खरीदने को तैयार नहीं था , सो वह वृद्ध लोग बाजार में एक जगह से दूसरी जगह चलता फिरता रहा। श्युत्हेयान आगे बढ़ कर वृद्ध से आधा दर्पण खरीदने के बहाने पर उस के पास गया, गौर से देखने पर उसे मालूम हुआ कि यह आधा दर्पण

अपनी पत्नी का ही था । असल में वह वृद्ध यांगसु भवन का सेवक था , राजकुमारी लेछांग ने अपने पति की तलाश के लिए वह आधा दर्पण उसे बाजार बेचने ले जाने को भेजा । पत्नी का आधा दर्पण देख कर श्युत्हेयान ने एक कविता लिख कर वृद्ध सेवक को वापस राजकुमारी लेछांग को देने सौपा । कविता का भावार्थ इस प्रकार थाः दर्पण का आधा तेरे संग गया , वह जब लौटा , पर तुम नहीं पहुंची । नहीं प्रतिबिंबित तेरी छवि दर्पण में , महज रही उस में रात की चांदनी ।

अपने पति के पास सुरक्षित आधा भाग का दर्पण व उस की कविता देख कर राजकुमारी लेछांग बड़ी दुख और अवसाद में पड़ गयी , वह रोज आंसू बहाती रही और खाने पाने में जरा भी मन नहीं लगाती । यांगसु को उस की असली स्थिति का पता चला , वह उन के सच्चे प्रेम से प्रभावित हो गया , तो उस ने श्युत्हेयान को अपने मंत्री भवन में बुला कर राजकुमारी लेछांग को उसे वापस लौटाया और दोनों को उन के अपने गृहस्थल वापस जाने दिया और उन्हें बहुत से धनदौलत भी प्रदान किए । इसी तरह श्युत्हेयान और लेछांग का पुनः मिलन हुआ । और उन की यह मनमोहक प्रेम कहानी बाद में चीन में टुटा दर्पण के पुनःमिलन के नाम से मशहूर हो गई ।

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