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छिंग राजवंश का स्थापत्य निर्माण

छिंग राजवंश ( ईस्वी 1616--1911 ) चीन का अंतिम सामंती राजवंश था , इस काल में स्थापत्य कला मिन राजवंश की परम्परा से बंधी हुई थी , बेशक , इस में कुछ नयापन और विकास भी आया , जैसा कि वास्तु शिल्प की बारीकी तथा चटकीलेपन पर ज्यादा ध्यान दिया गया ।

छिंग राजवंश की राजधानी पेइचिंग का स्वरूप मिंग राजवंश का रहा था , शहर के भीतर बीस ऊंची और आलीशान द्वार खड़े थे , जिन में से सब से बड़ा और भव्य वाला भीतरी नगर पर निर्मित जङयांग द्वार था । मिंग राजवंश के शाही प्रासाद की नकल पर छिंग राजवंश के विभिन्न सम्राटों ने बड़े पैमाने वाले शाही उद्यानों के निर्माण में होड़ लगायी थी , ये शाही उद्यान छिंग राजवंश के स्थापत्य निर्माणों में उत्कृष्ट कला बन गए , जिन में सब से मशहूर युनमिनय्वान उद्यान और समर प्लेस हैं ।

छिंग राजवंश के स्थापत्य समूह की निर्माण कला वास्तु समूह के विन्यास , डिजाइन तथा सजावट की दृष्टि से बहुत परिपक्व हो गई थी , खास कर उद्यानों के निर्माण में भू-स्थितियों तथा आसपास के पर्यावरण का अनुरूप बिठा कर डिजाइन किया जाता था और आकार प्रकार में परिवर्तन किया जाता था , इस क्षेत्र में पूरा किया जाने वाला काम बहुत ऊंचे स्तर पर पहुंचा था ।

छिंग राजवंश में स्थापत्य की शिल्प कला में नवन सृजन हुआ था , जो मुख्यतः पश्चिम से शीशे के निर्यात व प्रयोग तथा पत्थरों व ईंटों के इस्तेमाल में हुई प्रगति में प्रतिबिंबित हुआ था । इस एतिहासिक काल में चीन के रिहाइशी मकानों का निर्माण विविध शैलियों में हुआ था , डिजाइन विविध , स्वतंत्र तथा अपनी मन पसंद पर बनाया जाता था।

छिंग राजवंश में विशेष शैली का तिब्बती बौध स्थापत्य बहुत विकसित हो गया । तिब्बती बौध मंदिरों की आकृति परिवर्तनशील हो गई ,जिस ने मंदिर के निर्माण में एकल प्राचीन परम्परागत शैली को तोड़ दिया और नाना किस्मों की स्थापत्य शैली प्रकाश में आई । पेइचिंग का यिङह भवन यानी लामा मंदिर तथा छङत्ते शहर में निर्मित विभिन्न तिब्बती बौध मंदिर उस समय की परिवर्तनशील शैली की झलक देते हैं ।

छिंग राजवंश के उत्तर काल में चीन में चीनी परम्परागत शैली तथा पश्चिम की शैली के मिश्रित रूप में स्थापत्य निर्माण बनाया जाने लगा ।

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