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प्रतिभाशाली कवि सू शी
सू शी का जन्म वर्ष 1037 में दक्षिण पश्चिमी चीन के सछवान प्रांत के मेइ शान क्षेत्र में हुआ । सूशी के जमाने में चीन पर सुंग राजवंश शासन करता था । सू शी ची जान के नाम से भी संबोधित था । उन के पिता एक मशहूर प्राचीन साहित्यकार थे ।परिवार के बेहद सांस्कृतिक वातावरण में छोटी उम्र में ही सू शी के दिल में महात्वाकांक्षा संजोए हुई थी । सरकारी अधिकारी बनने के बाद सू शी सामाजिक सुधार में सक्रियशील रहे ।

चरित्र में शुद्ध और खुला होने के कारण सू सी सुंग राजवंश की सत्ता की बुराइयों का साहसिक आलोचक बने ,इस से वे सुंग राजवंश के दरबारी संघर्ष के शिकार हो गये । 43 वर्ष की आयु से सू शी कई बार सुदूर पिछड़े हुए इलाकों में निर्वासित किये गये । सू शी चीन के परंपरागत दर्शन शास्त्र कम्फ्युसेस, ताओ धर्म व बाहर से आये बौद्ध धर्म से प्रभावित हुए और तीनों धर्मों के ज्ञाता बन गए । अत्यंत कठोर जीवनयापन में उन्होंने ताओधर्म व बौर्द्ध धर्म का सहारा लेकर उदार हृदय से जीवन की दुखों से निजात पाया और कम्फ्युसेस की विचाराधारा के शिक्षा पा कर वे अपने आदर्श व सुंदरता की खोज करते रहे ।इस तरह कठोर राजनीतिक वातावरण में सू शी न सिर्फ अपना व्यक्तित्व व चरित्र बनाए रखने में सफल रहे ,बल्कि बाहर के करारे प्रहार के सामने कभी अपना सिर नहीं झुकाते थे ।

राजनीतिक जीवन में सू शी एक सदाचार और स्वच्छ व दृढ संकल्पबद्ध व्यक्ति थे ,पर आम जीवन में वे खुशी मिजाजी , उत्साहित और स्वाभव में खुले और सहनशील थे । उन का इस प्रकार का व्यक्तित्व प्राचीन चीनी बुद्धिजीवियों की आदर्श मिसाल बन गया , जो पुराने चीन में आठ सौ सालों तक लोकप्रिय रहा ।

सू शी काव्य और पद्य व गद्य लेखन के क्षेत्र में महान विद्वान थे । उन की कविताओं के विषय विविध और समृद्ध थे और लेखन शैली अनुठी और मोहक थी ,उन की कल्पना शक्ति अनोखी और विलक्षण थी और भाषा अलंकृत होने के साथ सजीव और सुबौधित थी ।सू शी की पद्य कविताओं ने तत्कालीन समाज व जन-जीवन के व्यापक पहलुओं को अभिव्यक्त कर दिया ,जो उस जमाने के अन्य लेखकों की तूलना में असाधारण और महान थे, चीन के थांग व सुंग राजकालों के सवर्मान्य आठ श्रेष्ठ साहित्य हस्तियों में सू शी सर्वश्रेष्ठ थे ।

सू शी के गद्य लेखन में यात्रावृतांत सब से श्रेष्ठ थे । छि पी चीन की सब से बड़ी नदी यांगत्सी के किनारे पर स्थित एक स्थान था ,जहां हान राजवंश के अंत में एक घमासान लड़ाई हुई थी ।सू शी ने शरद व सर्दी के मौसम में छि पी की दो बार यात्रा करने के बाद दो गद्य लिखे ,जो प्राचीन गद्य लेखन के पराकाष्ठा पर पहुंचा था और चीन के प्राचीन साहित्य इतिहास में एक अनुपम कृति माना जाता है । छिपि वृतांत नाम के इन दो गद्य व पद्य कृति में नदी के चांदनी रात के प्राकृतिक सौंदर्य से उत्पन्न हुए आदश भावना तथा गहन दार्शिक गुढ़ वर्णित हुआ था। लेखन बड़ा अलंकृत और मनमुग्ध था , जो सुंग राजवंश के गद्य व पद्य के चोटी के स्तर का प्रतिनिधित्व करता है ।

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