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लम्बी दीवार की कहानी

चीन की लम्बी दीवार के बारे में बहुत सी दिलचस्प कहानी चीन में प्रचलित है , लम्बी दिवार अपनी बेजोड़ लम्बाई के कारण तो विश्वविख्यात ही है , साथ ही बड़ी संख्या में निर्मित उस के दुर्गम दर्रे भी बेमिसाल है ।

लम्बी दीवार का निर्माण चीन के प्रथम सामंत सम्राट छिन शहुंग के शालन काल में किया गया था , और मिंग राजवंश के काल में इस का पुनर्निर्माण किया गया , जो छै हजार किलोमीटर लम्बी है । लम्बी दीवार पर बड़ी संख्या में दर्रे बनाये गए ,जिन में से कुछ दर्रे विशेष महत्व रखते थे । लम्बी दीवार का प्रथम दर्रा शानहाईक्वान दर्रा कलहाता है , जो दुनिया के प्रथम दर्रे के नाम से मशहूर है , शानहाईक्वान दर्रा उत्तर चीन के हपै प्रांत व ल्याओ निन प्रांत की सीमा पर खड़ा है , यह लम्बी दीवार का आरंभ स्थल है। शानहाईक्वान दर्रा उत्तर में य्येन शान पर्वत से सटा हुआ है और दक्षिण में पो हाई समुद्र के तट तक पहुंचता है । दर्रे के क्षेत्र में प्राकृतिक सौंदर्य बहुत आकर्षक है , पर्वत पर हरियाली छायी है और समुद्र की जल राशि स्वच्छ और लहरेदार है । दर्रे का मुख्य दरवाजा पर्वत और समुद्र के बीच ऊंचा खड़ा नजर आता है । दर्रे पर आरोहित हुए दूर दृष्टि दौड़ाए , तो आलीशान और भव्य सुन्दर पहाड़ी समुद्री नजारा दिखता है , इसी कारण इस दर्रे का नाम शान हाई क्वान अर्थात गिर सागर का दर्रा रखा गया ।

शानहाईर्क्वान दर्रे का निर्माण मिंग राज्य काल में राजवंश के मशहूर सेनापति श्यु ता द्वारा किया गया था । श्यु ता सैन्य मामले में बड़े दूर्दर्शी और विवेकशील थे , देश के सामरिक स्थानों पर कड़ा नियंत्रण रखने की दृष्टि से उस ने .यहां शान हाई क्वान दर्रा बनवाया । दर्रे के चार दरवाजे हैं , पूवी दरवाजे की दीवार के ऊंपरी भाग में एक विशाल तख्ता लगाया गया है , जिस पर बड़े बड़े अक्षर में दुनिया का प्रथम दर्रा आलेख अंकित है , यह तख्ता लम्बाई में 5.90 मीटर , चौड़ाई में 1.45 मीटर तथा ऊंचाई में 1.09 मीटर विराट है । तख्ते पर अंकित वह बड़े बड़े अक्षरों का नाम मिन राजवंश के प्रसिद्ध लिपिकार , सरकारी पदों के लिए परीक्षा में उत्तीर्ण विद्वान श्योश्यान के हाथों लिखा गया , पर तख्ते पर इस लिपिकार का नाम नहीं लिखा गया । कहा जाता था कि लिपिकार श्यो श्यान जब दुनिया का प्रथम दर्रा अक्षर लिख रहा था , उस ने एक ही सांस में ये बड़े बड़े शब्द लिख डाले थे , लिखने के बाद उस ने फिर इन शब्दों को कड़ी निगाह से जायजा , उन में से एक शब्द पर संतोष नहीं आया , उस ने फिर कई बार वह शब्द लिखा , पर असंतुष्ट रहा , तब वह थोड़े विश्राम के लिए मदिरा दुकान आया और मदिरा लेते हुए इन शब्दों के बारे में सोच रहा । इसी वक्त दुकानदार आ पहुंचा और उस ने आदत्त में अपने कंधे पर रखे तौलिया उतार कर मेज पर पानी की एक लकीर खींची , पानी की लकीर देख कर श्यु श्यान के दिमाग में एक विचार धौंका और उस ने खुशी के मारे उछल कर कहा कि बहुत अच्छा , बहुत अच्छा । दरअसल श्यु श्यान पानी की उस लकीर पर इतना प्रभावित हो गया था ,क्योंकि वह लकीर देखने में चीनी अक्षर --प्रथम के रूप में उच्चतम कोटि की लगती थी । श्यु शयान ने तुरंत इस की नकल उतारी और तख्ते पर पुनः दर्रे का नाम लिखा , पुनः लिखा गया यह नाम चीन के इतिहास में एक बेजोड़ लिपिकला की कृति के लिए आज तक भी मशहूर रहा है । इस असाधारण सफलता के कारण श्यु श्यान ने आलेख पर अपना लिखने की परम्परा त्याग दी , इस तरह इस मशहूर तख्ते पर लिपिकार का नाम नहीं है , यह हालत चीन के इस प्रकार के मामले में अन्य मौके पर देखने को नहीं मिलती है ।

लम्बी दीवार का पश्चिमी छोर चायुक्वान दर्रा है , जो उत्तर पश्चिम चीन के कांसू प्रांत के चायु शहर में स्थित है , यह दर्रा मिंग राजवंश के हुङ वु काल ( ईसा 1372 )

में बनाया गया था । दर्रा चायु पहाड़ पर खड़ा होने के कारण उस का नाम चायुक्वान पड़ा । इस दर्रे के निर्माण के बाद यहां फिर कभी युद्ध नहीं हुआ था , इसलिए दर्रे का नाम शांति दर्रा भी आया ।

उत्तर चीन के शानसी प्रांत के फिंग तिंग जिले में लम्बी दीवार पर न्यांग जी क्वान भी काफी मशहूर है , न्यांग जी क्वान दर्रा खतरनाक और दुर्गम पहाड़ी चोटी पर बनाया गया है , चारों ओर नीची ऊंची पहाड़ी चट्टानें खड़ी है , जिस पर सैन्य चढ़ाई करना अत्यन्त कठिन था और प्रतिरक्षा करना आसान था , इसलिए यह दर्रा शानसी प्रांत का अभेद्य दुर्ग भी कहलाता था । इस दर्रे का नाम पहले वीचेक्वान था । चीन के थांग राजवंश के काल में प्रथम सम्राट ली य्वन की तीसरी बेटी राजकुमारी फिंगयांग दर्जनों हजार सैनिकों का कमान करते हुए इस जगह तैनात थी , राजकुमारी फिंग यांग युद्धकला में कुशल और बड़ी तेजस्वी थी , उस की सेना को तत्काल न्यांगजी सेना अर्थात कुमारी की फौज कलहाती थी । इस के आधार पर दर्रे का नाम भी बदल कर न्यांगजी क्वान ( क्वान का मतलब दर्रा ) पड़ा । आज भी इस दर्रे के पूर्वी दुर्ग की दीवार पर शाही कुमारी दर्रा शब्द अंकित हुआ देखने को मिलता है ।

उत्तर पश्चिमी चीन के कांसू प्रांत के तुनहुंग जिले के उत्तर पश्चिम में स्थित शोफांगफान नगर में लम्बी दीवार का युमनक्वान दर्रे का खंडहर मौजूद है , यह दर्रा प्राचीन काल में सिन्चांग के हथ्येन जिले से जेड सामग्री को भीतरी इलाके में पहुंचाया जाने का एक मुख्य मार्ग था , इसलिए दर्रे का नाम युमन क्वान अर्थात जेड दरवाजा दर्रा पड़ा ।

उत्तर चीन में पेइचिंग के अधीन छांगफिंग इलाके में फैली लम्बी दीवार पर च्युयङ क्वान खड़ा है , तत्काल में लम्बी दीवार के निर्माण के दौरान सरकारी दफतर इस जगह स्थानांतरित हो कर निर्माण कार्य की देखरेख कर रही थी और इस दर्रे का पास खड़े च्यन्तु पहाड़ पर कंट्रोल था , इसलिए दर्रे का नाम च्युयङ क्वान यानी नियंत्रण दर्रा रखा गया ।

शानसी प्रांत के फ्यानक्वान जिले में स्थित फ्यानथोक्वान दर्रा चीनी भाषा में एक विचित्र नाम है , असल में यह दर्रा एक असमतल स्थान पर खड़ा है , भू-स्थिति पूर्व में ऊंची तथा पश्चिम में नीची है और बड़ा ढालवां होती है , इसलिए इस दर्रे का नाम फ्यानथोक्वान अर्थात ढालवां दर्रा रखा गया ।

शानसी प्रांत के तै श्यान जिले में फैली एक संकरी पहाड़ी वादी में यांमनक्वान शान से खड़ा है , दर्रे के दोनों ओर सीधी खड़ी पहाड़ी चट्टानें हैं , चट्टान इतनी सीधी और ऊंची है , राजहंस भी उसे पार नहीं कर सकता और उसे वादी में उतर कर नीचे के दर्रे से गुजरना पड़ता है , इसी दृश्य को देखते हुए इस दर्रे का नाम यांमनक्वान अर्थात राजहंस द्वार रखा गया ।

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