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सांग राजवंश
चीन के अकादमिक क्षेत्र में शा राजवंश चीनी राष्ट्र का सब से पहला राजवंश माना जाता है । लेकिन शा राजवंश के संदर्भ में जो एतिहासिक सामग्री मिलती है , वह प्रायः उस के उत्तरावर्ती कालों में लिखी गई थी , अब तक पुरातत्वी खुदाई से शा के बारे में कोई पक्के अवशेष नहीं मिले हैं । चीनी राष्ट्र के प्राचीन काल में जिस प्रथम राजवंश के संदर्भ में पुरातत्वी खुदाई से पुष्ट सामग्री मिली है , वह सांग राजवंश । पक्के एतिहासिक उल्लेख प्राप्त प्रथम चीन के राजवंश सांग के बारे में संक्षिप्त उल्लेख अब निम्नलिखित है ।

सांग राजवंश की स्थापना ईसापूर्व 16 वीं सदी में हुई और उस का पतन ईसापूर्व 11 सदी में हुआ , जो छै सौ वर्ष पुराना रहा ।सांग राजवंश के पूर्ववर्ती काल में उस की राजधानी कई बार स्थानांतरित हुई , अंत में यन नामक स्थान में पूरी तरह स्थापित हो गई , जो आज के हनान प्रांत के आनयांग शहर के निकट थी । पुरातत्वी खुदाई से प्राप्त सामग्री साबित करती है कि सांग के आरंभिक काल में चीनी राष्ट्र की सभ्यता काफी ऊंचे स्तर पर विकसित हो गई थी , जिस की मुख्य विशेषता कच्छ खोलों तथा पशुहड्डियों पर उत्तेरित लिपि तथा पीतल पात्र संस्कृति का विकास होती थी । कच्छ खोलों व पशुहड्डियों पर उत्तेरित लिपि का पता एक संयोग में चला । 20वीं शताब्दी के शुरू में मध्य चीन के हनान प्रांत के आनयांग शहर के उत्तर पश्चिम में स्थित शाओ थ्वुन गांव के किसानों को संयोग में कुछ कच्छप के खोल और पशु की हड्डियां हाथ लगे , उन्हों ने इन चीजों को औषधि समझ कर औषधि दुकान को बेचा । कुछ विद्वानों ने इन खोलों व हड्डियों पर खुदी प्राचीन कालीन लिपि पहचानी और ऐसे कच्छ खोलों और पशुहड्डियों की खोज करना शुरू किया । इस के बाद चीनी प्राचीन भाषा विशेषज्ञों ने इन चीजों पर खुदी लिपि को सांग राज्य काल की लिपि तय की , फिर एतिहासिक सामग्रियों के आधार पर यह निश्चित किया कि शाओ थ्वुन गांव का आबाद स्थान प्राचीन ग्रंथों में उल्लिखित सांग राजवंश की राजधानी यन का खंडहर है । यन खंडहर का पता लगना 20 वीं शताब्दी में चीन के पुरातत्वी खुदाई क्षेत्र में सब से महत्वपूर्ण उपलब्धि है । वर्ष 1928 से वहां पुरातत्वी खुदाई शुरू होने के बाद अब तक बड़ी मात्रा में कच्छ खोल व पशुहड्डि वाली लिपि सामग्रियां और पीतल के बर्तन जैसी अमोल सांस्कृतिक अवशेष उपलब्ध हुए हैं । कच्छ खोलों और पशुहड्डियों पर उत्तेरित अक्षर चीन की प्राचीन लिपि मान्य हो गई । सांग राजवंश में राजा किसी भी अनुष्ठान के आयोजन से पूर्व शकुन निकलवाता था । उस समय शकुन विचारने में कच्छ खोल और पशु हड्डी का प्रयोग होता था । शकुन विचार के लिए प्रयुक्त होने वाले खोलों और हड्डियों को पहले साफ सुथरा बनाया जाता था , उसे औजार से समतल कर दिया जाता था , फिर चाकु से कच्छ खोल की भीतरी तरफ तथा हड्डी की एक तरफ को तराश कर अनेक रेखाएं बनायी जाती थीं , ये रेखाएं क्रम में होती थीं । ऐसे खोल या हड्डी पर भावी भाग्य पूछने वाले अपना नाम और अनुष्ठान के वक्त तथा पूछे जाने वाले सवाल लिख देते थे , इस के बाद आग से कच्छ खोलों और पशु हड्डियों को ताप देता था , खोल और हड्डी ताप पकड़ने पर फट जाते थे , तराश हुई रेखा पर दरार पड़ता था , इस प्रकार के दरार को चो अर्थात पूर्व संकेत कहा जाता था । सगुन विचारक इन दरारों के फटने की स्थिति का विश्लेषण कर भविष्यवाणी करते थे , भविष्यवाणी के शब्द भी कच्छ खोलों और हड्डियों पर खोद कर लिखे जाते थे । इन भविष्यवाणी के उत्तरावर्ती समय सही साबित होने के बाद उन्हें राजकीय दस्तावेज के रूप में सुरक्षित किए जाते थे । अब तक यन खंडहर की खुदाई से कुल एक लाख 60 हजार ऐसे खोल और हड्डियां उपलब्ध हुई हैं , कुछ अखंड है और कुछ टुकड़ों में है । आंकड़ों के अनुसार इन खोलों और हड्डियों पर कुल चार हजार अक्षर है , जिन में से तीन हजार पर विद्वानों द्वारा अध्ययन किया जा चुका है । तीन हजार अक्षरों में से एक हजार के अर्थ समझ में आए , शेष को समझने में कठिनाई बनी है या विद्वानों में मतभेद है । फिर भी इन हजार अक्षरों के अध्ययन से हमें सांग राज वंश के संदर्भ में काफी विस्तार से राजनीतिक ,आर्थिक व सांस्कृतिक ज्ञान प्राप्त हुआ है ।

कच्छ खोलों व पशु हड्डियों पर खुदी लिपि के अध्ययन के बारे में प्रथम विशेष लेख वर्ष 1913 में प्रकाशित श्री ल्यू अ की रचना लोहे और कच्छप का रहस्य माना जाता है । वर्ष 1929 में सुप्रसिद्ध चीनी इतिहारकार व साहित्यकार श्री क्वे मो न्यु की रचना कच्छ खोलों व पशु हड्डियों का अनुसंधान एक दूसरी अहम रचना मानी जाती है । वर्तमान चीन में इस क्षेत्र में अध्ययन के लिए पेइचिंग विश्वविद्यलय के प्रोफेसर श्री छ्यो शि क्वु और चीनी इतिहास अनुसंधान प्रतिष्ठान के प्रोफेसर श्री ली श्वे छिन सब से पसिद्ध हैं ।

कच्छ खोलों व पशु हड्डियों पर खुदे आलेख की भांति सांग राजवंश के पीतल के बर्तन भी उस युग का प्रतीकात्मक धरोहर है । सांग राजवंश में पीतल पात्रों का धातु शोधन कौशाल बहुत ही ऊंचा हो गया था । यन खंडहर की खुदाई से प्राप्त पीतल के बर्तन हजारों की संख्या में है , जिन में से वर्ष 1939 में उपलब्ध माता वु की पूजा नामक विशाल पीतल पात्र सब से मशहूर और अमुल्य है , यह पात्र आठ सौ 75 किलोग्राम भारी , एक सौ 33 मिलीमीटर ऊंचा , एक सौ 10 मिलीमीटर लम्बा तथा 78 मिलीमीटर चौड़ा है । उस का रूपाकार विशाल और भव्य है , जो चीन के प्राचीन काल की पीतल पात्र संस्कृति में चोटी की श्रेणी का प्रतिनिधित्व रखने वाली वस्तुओं में से एक है । पुरातत्वी खुदाई तथा अकादमिक अध्ययन से सिद्ध हो गया है कि चीन के सांग राज्य काल में राज्य सत्ता की उत्पत्ति भी हुई थी , निजी स्वामित्व व्यवस्था प्रायः कायम हो गई , उसी काल से चीन का इतिहास सभ्य युग में दाखिल हो गया था ।

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