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चीनी चिकित्सा पद्धति का बुनियादी सिद्धांत

चीनी चिकित्सा पद्धति के बुनियादी सिद्धांत में मानव शरीर की गतिविधि तथा रोग लगने के कारणों का संक्षिप्त वर्णन किया जाता है । इसमें मुख्य तौर पर ईंनयांग, वूशींग , यूनछी, ज़ांगश्यांग तथा चींगल्वो आदि शाखाएं शामिल हैं । इन सभी शाखाओं में मनुष्य को रोग लगने के कारण , रोग के पहचान की व्यवस्था , उपचार करने वाले उपाय , रोग की पहचान करना , रोग का इलाज बताने वाले सिद्धांत , रोगों की पूर्व रोकथाम करना तथा स्वयं को स्वस्थ बनाये रखना आदि मुद्दे शामिल हैं ।

ईंनयांग से चीन के प्राचीन दर्शनशास्त्र का बोध होता है । प्राचीन काल में चीनियों ने विश्व में भिन्न भिन्न चीज़ों का दर्शन करने पर प्राप्त अंतरविरोधों को ईंन और यांग दो भागों में विभाजित किया था , और ईंन व यांग दो प्रत्ययों से सभी चीज़ों के परिवर्तन का विश्लेषण भी किया था । चीनी परंपरागत चिकित्सा पद्धति के मुताबिक प्राचीन चीनी चिकित्सक मनुष्य शरीर के ऊपर व नीचे , अन्दर व बाहर, तथा मनुष्य के प्राण व प्रकृति और समाज के बीच संश्रित संबंधों पर प्रकाश डालता था । मनुष्य के शरीर के अन्दर ईंन और यांग दो प्रत्ययों का संतुलन रहना चाहिये , अन्यथा शरीर स्वस्थ रूप से काम नहीं करेगा । शरीर में ईंन और यांग के बीच का संतुलन बिगड़ने की स्थिति में आदमी को बीमारी लगेगी और सामान्य शारिरिक गतिविधियों में रुकावट पैदा होगी ।

यूनछी कथन का दूसरा नाम है वूयून ल्यूछी , जो मुख्य तौर पर प्राकृतिक जगत में खगोलीय दृश्य , वायुमंडल तथा मौसम परिवर्तन से मानव के स्वास्थ्य और बीमारियों पर असर डालने वाले प्रभावों का अध्ययन करता था । वूयून का मतलब है कि पांच चलन यानी लकड़ी चलन , आग चलन , मिट्टी चलन , स्वर्ण चलन तथा पानी चलन । इन चलनों से एक साल में वसंत काल , गर्मी काल , पतझड़ काल तथा शीत काल का संचालन बताया जाता था । ल्यूछी कथन का मतलब है मानव के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले छह तत्व यानी हवा , सर्दी , गर्मी , आर्द्रता , सूखा तथा आग । यूनछी कथन के मुताबिक खगोलीय पंचांग से हर वर्ष में मौसम परिवर्तन और बीमारी होने के बीच के संबंधों का विश्लेषण किया जा सकता था ।

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