भारत में मीडिया अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है । यह बात भी सुनने को मिलती है कि भारत में सरकार नहीं, मीडिया ही फैसला कर लेता है । इसके बारे में चाइना रेडियो इंटरनेशनल के टिप्पणीकार अपने कार्यक्रम में कुछ बता रहे हैं ।
सपना – यह चाइना रेडियो इंटरनेशनल है । सभी श्रोताओं को सपना की नमस्ते ।
हू – और हूमिन की तरफ से भी नमस्कार ।
सपना – हू साहब, पिछले हफ्ते आप ने चीन और भारत के संबंधों में जो"लैंग्वेज प्रॉब्लम"के बारे में चर्चा की थी, उस पर हमारे श्रोताओं की तरफ से बहुत-सी प्रतिक्रियाएं आयी हैं । बहुत से दोस्तों ने हमें पत्र या संदेश भेजकर अपने विचार प्रकट किये और वे इससे सहमत हैं कि चीन और भारत को पारस्परिक समझ को बढ़ावा देना चाहिए और आपस में गलतफहमियों को हटाने की कोशिश करनी पड़ेगी ।
हू – जी । चीन और भारत के संबंधों में पारस्परिक समझ और पारस्परिक विश्वास के बारे में गंभीर "घाटा" मौजूद है । दोनों देशों, और दोनों देशों की जनता के बीच में अधिक समझ और विश्वास बिठाना चाहिये । लेकिन इसी संदर्भ में मीडिया कुंजीभूत भूमिका निभाता है । क्योंकि मीडिया दोनों देशों के बीच पुल जैसा होता है, और यह भी कहता है कि कभी-कभी देश का फैसला मीडिया ही द्वारा लिया जाता है ।
सपना – मीडिया क्या फैसला ले सकता है?मीडिया लोगों की जानकारियों का संचरण करता है न?और मीडिया इसी शब्द का मतलब भी है दोनों पहलुओं के बीच में सूचना भेजने का साधन । मीडिया वास्तव में पुल या सेतु ही है । क्या यह ठीक है न?
हू – आम तौर पर यह सही है । लेकिन कभी-कभी ऐसा नहीं होता है ।
सपना – क्यों ?
हू – क्योंकि भारत जैसे देश में किसी भी सत्तारूद्ध पार्टी का स्थान लोकमत से आधारित है । अगर जन राय का समर्थन नहीं मिलता, तो वह पार्टी अपने सिंहासन से हाथ धो बैठेगी । लेकिन जन राय का सारांश कैसे हो सकता है?मीडिया ही इसे तय करता है ।
सपना – लेकिन यह बात भी सुनती है कि लोकतांत्रिक देश में जनता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अनुसार अपनी राय व्यक्त करती है, और मीडिया को जनमत का सारांश करके रिपोर्टिंग करना है । इसका मतलब है कि मीडिया को जन राय का शत प्रतिशत प्रतिनिधित्व करना चाहिये । क्या यह ठीक नहीं है ?
हू – जैसे मैंने कहा कि आम तौर पर यह सही है, यानी सिद्धांत तो यही है, लेकिन बात कभी कभी ऐसी नहीं होती है । मीडिया को जनता की सच्ची उम्मीदों के प्रति वफादार होना चाहिये । लेकिन वास्तव में मीडिया का अपना-अपना बैकग्राउंड है और मीडिया में काम करने वाले कर्मचारियों का अपना-अपना राजनीतिक विचार भी है । इसीलिये मीडिया के लिए न्याय व निष्पक्ष रिपोर्टिंग करना मुश्किल है । और मीडिया में जो लोग अपने हाथ में अधिकार प्राप्त है, वे कभी कभी इसके माध्यम से सरकार को प्रभावित करना चाहते हैं ।
सपना – हां जी । इधर के दिनों आपके साथ बातचीत करते समय मैंने भी बहुत सोचा । समाज में मीडिया कितना महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है । लेकिन मुझे दुख की बात है कि कुछ मीडिया ने सकारात्मक भूमिका नहीं निभायी है और कुछ मीडिया ने सनसनी पैदा करने के लिए भड़काऊ रिपोर्टिंग की है । मीडिया को समाज की जिम्मेदारी उठानी चाहिये, है न ?लेकिन मानो कुछ मीडिया अपनी समीक्षाओं में दूसरों को संघर्ष और यहां तक कि युद्ध करवाने की कोशिश कर रही है । वे जनता के दिल में युद्ध की आग भड़काती हैं, यह क्यों है ?
हू – हां । मैं आपकी बात से सहमत हूं । लेकिन मेरा ख्याल है कि ऐसी स्थिति में मीडिया का दोष नहीं, दोष है मीडिया के पीछे आदमी का । क्योंकि मीडिया सिर्फ औजार है, वह प्लेटफार्म ही है । मीडिया में जो कमान संभालता है, वह सब कुछ तय करता है और इसे ही जिम्मेदारी उठानी है ।
सपना – अच्छा, यही तो मुझे साफ लगता है । मीडिया निर्दोष है, लेकिन मीडिया में काम कर रहे कुछ आदमी अच्छे नहीं हैं । हम सब जानते हैं कि जब दो आदमियों के बीच झगड़ा है, तो हमें इनके बीच में मध्यस्थता करना चाहिए, और समझौता करवाना चाहिये। लेकिन आज हम यह देख पाते हैं कि कुछ आदमियों ने झगड़े का प्रसार करने, और आग में घी डालने की कोशिश की है । ये आदमी क्या करना चाहते हैं ?
हू – ऐसे आदमी जो कोशिश कर रहे हैं, वह नफरत फैलाना है । विश्व के सभी देशों की कानून व्यवस्था में संघर्ष या युद्ध की आग भड़काना मना होता है । संयुक्त राष्ट्र चार्टर में भी शांति की रक्षा को प्राथमिकता देना निर्धारित है । लेकिन कुछ आदमी मीडिया के माध्यम से पड़ोसी देशों के बीच युद्ध और रक्तपात को बढ़ावा देते रहे हैं । यह क्यों है?क्या ये ह्यूमन हैं?ऐसे आदमी, जब गोलियों की आवाज सुनेंगे, वे गोली से भी जल्दी फ़रार हो जाएंगे । पर वे दूसरे परिवार के जवानों को युद्ध में धकेलने की कोशिश कर रहे हैं । दूसरे जवानों का खून खून ही नहीं है?दूसरे जवानों की जान जान ही नहीं है?ऐसे आदमी के दिल में क्या है?इससे पूछने की जरूरत है ।
सपना – ठीक है । यह सच है कि मीडिया किसी भी देश में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है । और कभी कभी मीडिया सरकार का स्थान लेकर अंतिम फैसला कर लेती है । क्योंकि मीडिया न केवल लोकमत का सारांश करती है, बल्कि लोकमत की लीडिंग भी कर सकती है । इसलिए मीडिया में कार्यरत सभी लोगों को अपनी जिम्मेदारी महसूस करनी चाहिये ।
हू – बिल्कुल सही । मीडिया में जो रिपोर्टिंग करते हैं, वे आम तौर पर अपनी रिपोर्टिंग उचित और जिम्मेदारना समझते हैं । लेकिन एक जिम्मेदारना मीडिया को अपनी रिपोर्टिंग के परिणाम के लिए भी जिम्मेदार होना चाहिए । और जो रिपोर्टर हैं, उन्हें जी-जान से मनुष्य के इतिहास, संस्कृति और संस्कृति के सार का अध्ययन करना चाहिए, फिर अध्ययन के आधार पर रिपोर्टिंग करनी चाहिए ।
सपना – जहां का ताल्लुक है कि संस्कृति का सार, आप बताइये चीन और भारत का सांस्कृतिक सार क्या क्या है । मुझे इस पर रूचि है ।
हू – संक्षिप्त में कहें कि चीनी संस्कृति का एक सार है फेस, और भारतीय संस्कृति में आत्मसम्मान ।
सपना – फेस और आत्मसम्मान, दोनों में क्या फर्क है?
हू – यह है दूसरा टॉपिक । हम अगली बार इसके बारे में चर्चा करें ।
सपना – अच्छा, तो अगले हफ्ते आप का बयान सुनेंगे । श्रोताओ, आज का कार्यक्रम यहीं तक । अगले हफ्ते फिर मिलेंगे । नमस्ते।
हू – नमस्ते ।