जंगल में घटता वास और वन्यजीव के लुप्त होने के खतरे पर नया वैश्विक विश्लेषण बताता है कि कई प्रजातियां खतरे में हैं। इसकी वजह मानवीय क्रियाकलाप बताए गए हैं इनमें मुख्य रूप से शिकार करना, खनन और पशुपालन हैं।
यह शोध पत्र नेचर पत्रिका के नये अंक में प्रकाशित हुआ है। शोधार्थी का तर्क है कि मानवीय गतिविधियों से प्रभावित क्षेत्रों की तुलना में अछूते क्षेत्रों को संरक्षण में अधिक वरीयता दी जानी चाहिए।
अमेरिका के मैरीलैंड विश्वविद्यालय में मैथ्यू हानसेन ने जंगल में वास पर आधारित वैश्विक आंकड़ों को जुटाने के बाद यह निष्कर्ष दिया है।
19,432 कशेरुकी प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर हैं। जिनको कथित खतरे की सूची में अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने डाला है। हानसेन का शोध यह भी बताता है कि हर साल 10.5 लाख स्क्वायर किमी जंगल खत्म हो रहा है।
जय प्रकाश